28/8/2023.
चंदामामा भारत के सभी
जनों के प्यारे मामा, चंदामामा।।
बचपन में सभी भारतीयों में,
संस्कार सिंचन करने वाली,
मासिक बाल पत्रिका जो,
भारतीय बायीश भाषाओं
में प्रकाशित होतीं थीं,
‘चंदामामा’ याद आ गई।।
सभी कवियों को कल्पना
प्रदान करनेवाले चंदामामा,
रविन्द्रनाथ टैगोर लिखित,
कविता में माँ चंदा को
कहती है, ” तेरा स्वेटर कौनसे नाप का करू? क्योंकि चंदा तु तो रोज
घटता है या फिर बढता है”।। ऐसे भावों वाली कविता याद आयी।।
सभी श्रृंगार प्रधान रचनाओं
में चंद्रमा की उपमा मुख्य रूप से होती है।
चंद्रमा से साहित्यिक जगत में कहावतें मुहावरे भी बने है।
उदाहरणार्थ :
इद का चांद – बहोत दिनों के
बाद दिखाई देना।
हथेली में चांद दिखाना –
जुठी आशा दिखाना।
धार्मिक व्रतों और वैज्ञानिक कथनों
दोनों में चंद्रमा का, विशेष तौर पर
महत्त्व है।
रात्री को खिलने वालें, धवल फूलों,
चंद्रमा को देखकर ही, खिलतें हैं।।
चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण
दोनों में चंद्रमा की भूमिका
महत्त्वपूर्ण होती हैं।
समुद्र में ज्वार भाटा भी
चंद्रमा की कलायें से ही
आते हैं।
ज्योतिष शास्त्र में,
मन का कारक चंद्रमा है।
राशि भी चंद्रमा के स्थान पर,
आधारित होती है।
चंद्र मास से अद्भुत पंचांग गणना!!!
अभी हम हमारे पुराणों में
द्रष्टिपात करेंगे…
दक्ष प्रजापति की २७ कन्याओं के साथ,
विवाह किया चंद्रमा ने,
रोहिणी के प्रति अति लगाव के कारण,
श्वसुर द्वारा श्रापित, चंद्रमाने की शिवपूजा,
फिर प्रथम ज्योर्तिलिंग –
सोमनाथ महादेव की
स्थापना हुई।।
शिवजी ने चंदमा को,
अपने मस्तक पर,
स्थान दिया।।
देवीपुराण में नवरात्रि
के चौथे क्रम के दुर्गामा
चंद्रघंटा माताजी।।
वामन अवतार में, श्रावणी पुर्णिमा
के दिन लक्ष्मी जी ने, बली राजा को रक्षासूत्र
बांध कर अपने पति,
भगवान विष्णु जी को,
बलि राजा के द्वारपाल से,
मुक्त कराये थे।
सूर्यवंशी भगवान श्री रामने अपने नाम के,
संग जोड़ दिया चंद्र को,
बचपन में रामजी को
लीला करने के लिए,
चंद्र के साथ खेलने का
मन जो हो गया था!!!
फिर गुरुजी वशिष्ठऋषि
ने चांदी की थाली में,
पानी भरके राम लल्ला
को चांद दिला दिया था।।
रामचंद्र के परम भक्त,
चिरंजीवी हनुमानजी ने,
चैत्री पुर्णिमा को जन्म
लिया था।।,
भगवान श्री कृष्ण ने भी,
शरदपुर्णिमा को रासलीला
रचाई थी।
चंद्रवंशी कुल पांडवों में,
वीर किंतु अल्पायु अर्जुन
पुत्र अभिमन्यु के लिए,
चंद्रपुत्र ने मनुष्य अवतार
धारण किया था।।
सतयुग, द्वापर युग,
त्रेतायुग, और कलियुग
चारों युगों में धरती मैया
से चंद्रमा नीलगगन में,
दिखाई देता है।
धरती के लोग चंद्र पर जाने
के लिए लालायित होते हैं!!!
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पहले के तीन युगों में तो
देवो, दानवों और ऋषि-मुनियों अपने सिद्धिबलों से,
चंद्र पर जा सकते थे।
किंतु कलियुग में तो,
1969 में मनुष्य ने प्रथम
बार, चंद्र पर अपने
पैर रखे!!!
तब से धरती के विभिन्न देशों चंद्र पर अपना झंडा
गाढने उत्सूक थे…
क्रमशः
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किंतु,
२३ अगस्त २०२३ के दिन,
महादेव का प्रिय मास सावन,
भारत का स्वातंत्र्य मास अगस्त,
अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर तैयार हो रहा है
और
हमारा चंद्र यान पहुंच गया,
चंद्र उपर!!!
चंद्र के दक्षिण भाग में,
‘विक्रम चंद्रयान’ का अद्भुत
विक्रम!!!
भारत देशका प्रथम विक्रम
सर्जन करने के लिए!!!
भारतीय चिन्ह स्थापित करने, एवं राष्ट्र ध्वज लहराने के लिए!!
चंद्र पर हमारा राष्ट्र ध्वज
सर्व प्रथम!!!
धन्य है इसरो!
धन्य है हमारे देश के नागरिकों!
धन्य हैं हमारें आदरणीय
प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी!
मनुष्य का स्वभाव है,
प्रकृति से खिलवाड़
करने का।
अगलें आनेवालें वर्षो में,
पृथ्वी वासीयों,
चंद्रमा को पर्यटन स्थल
न बनादे!!!
भावना मयूर पुरोहित हैदराबाद तेलंगाना
६/९/ २०२३.
6/9/2023.