प्रकृति एवं मानव – भावना मयूर पुरोहित. हैदराबाद तेलंगाना

 

मोती का उद्गम स्थल  –  नमकीन रत्नाकर,
कोयलें के सहोदर  हीरें,
मिट्टी कणों 
से कभी स्वर्ण रज,
दल दल से नीरज,
काँटों की पत्तियों के        बिच में केतकी,
रेशम कीडें  से रेशम, 

मिलती  हैं सिख हमें प्रकृतिसे 
बूराईओं पर विजय पाती हैं अच्छाईयाँ, 
अवहेलना करतें हैं मानवों 
प्रकृति की निज स्वार्थ के लिए। 
कस्तूरीमृग के लिए कयी मृगों
की हत्या, 
मोती के लिए मछलीयों की हत्या, 
अंबर के लिए व्हेल  मछलीयों का शिकार, 
हाथीदांत के लिए गजराजों की हत्या, 
बाघनाखूनों और खालों के
लिए बाघों की हत्या, 
बारहसिंगाओं  की हत्या सिंगो के लिए, 
मधु के लिए मधुमक्खियों को
धूँआ, 
अपने भोजन, शौक, सौंदर्य, 
तंदुरुस्ती के लिए कितने सारे 
पशुओं पक्षियों की हत्या। 

मनुष्य का विलास!!! 
प्रकृति का  विनाश!!! 

यदि जान लेंगे हम प्रकृति   का रहस्य, 
तो जरूर करेंगे हम प्रकृति की सुरक्षा, 

यदि मान ले हम प्रकृति को 
बनें हम गुणग्राही, 
तो हमारा विकास हो सकता हैं। 

मोती, हीरा, सोना सब पाये
हरदम, गहनों के जैसे गुणों से
चमककर, 
कस्तूरी, अंबर, केतकी से खूशबू, 
रेशम से नरमी, चर्म से कोमलता, 
बाघनाखूनों, हाथीदांतों, सिंगो
जैसे मजबूत,
जीवन में कठोर तपस्या, संघर्ष, 
मधु सा मीठापन, मधुमक्खी का समूह में रहना, 
सीपों जैसे मन को कवच में
रखना, 

प्रकृति की आकृति समज
लेता मानव, 
तो  हो जाता है, 
अपनी  सुधारी हुई प्रत-आवृत्ति!!! 

मानव फिर हो जाता है… 
दानव से देव होने का यात्री!!! अन्यथा ,
मानव देव नहीं किंतु दानव-
जो अच्छा नहीं है मानव!!!  ‘दानव’  एक ऐसा मानव, 
जो भटक गया है, 
गुमराह हो गया हो या फिर 
उसे गुमराह किया गया हो… 

 देव या दानव तो नहीं, 
मानव बस ऐक अच्छा मानव
बने तो बहुत ही अच्छा है!!! 

भावना मयूर पुरोहित हैदराबाद तेलंगाना