अब एक बार, खुद से रिश्ता निभाऊंगी।
चुपके से देख कर आईना..
मैं आज मुस्कुराऊँगी।
सब्जियाँ बनाते बनाते, एक बार इधर आऊँगी,
फेर कर उँगलियाँ बालों में..
आज यूँ हीं शर्माउंगी।
किताबें समेटूंगी बच्चों के, और राशन भी लाऊंगी,
कर के सारे काम,
फुर्सत से बैठ कर,एक कविता भी लिख जाउंगी।
मेहंदी लगा लुंगी बालों में,चश्मा आँखों पर चढ़ाउंगी,
और दर्द भरे पाओं से,
मैं नई मंजिल को पाऊँगी।
करुँगी सेवा सब की, सारी ज़िम्मेदारी निभाऊंगी,
पर कभी कभी बालकनी में,
एक कप चाय, खुद को भी पीलाउंगी।
उठो, पढ़ो, सुनो, चलो… दिन भर चिल्लाउंगी,
पर शाम में आई तेरी याद तो,
अकेले में, प्यार भरे गीत गुनगुनाउंगी।
क्यों खो जाती हैं हम औरतें, अपनों को चाहते चाहते?
अब खुद को भी,
मैं अपनों में हीं गिनती जाउंगी ❤️